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Showing posts from April, 2020

रामायण में भोग नहीं, त्याग है

भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं। एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया ।                     श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं । माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया । तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली । आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ? अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले । माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिरा

भगवान श्री राम ने माता सीता का त्याग क्यों किया?- एक अनसुलझा प्रश्न

कुछ अज्ञानी लोग कहते हैं की राम भगवान नही थे। वे केवल एक इंसान थे। जिनकी शक्की मानसिकता थी। जिस कारण उन्होंने सीता जी का त्याग कर दिया। लेकिन हमारे समाज की ये खासियत है की वे किसी के गुण नही देखते हैं। बस कमियों को देखते हैं। जब तक आदमी अच्छा काम करता रहता है तब तक ठीक लेकिन जैसे ही उससे एक गलती हो जाये तो सारा समाज उसे दोषी समझने लगता है। यहाँ तक कि कई बार अपराध सिद्ध भी नही होता समाज उसे दोषी समझने लग जाता है। कितनी विचित्र बात है।                          भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। जिन्होंने कभी भी अपनी मर्यादा को नही तोडा। जब राम जी का विवाह हुआ था, तब उन्होंने जानकी जी को वचन दिया था। रामजी कहते हैं जानकी, अक्सर देखने में आता है की राजा एक से अधिक विवाह कर लेते हैं। लेकिन मैं तुम्हे वचन देता हूँ की मैं केवल एक पत्नी व्रत धर्म को ही निभाऊंगा। ये बात सिद्ध करती है की रामजी का केवल और केवल जानकी जी से ही प्रेम था। उन्होंने सीता जी के आलावा किसी भी नारी को सपने में भी नही देखा। सीता और राम कब वियुक्त है वे तो नित्य युगल है। पुरातन प्रेमी हैं। राम स्वयं को

माता सीता की अग्निपरीक्षा की वास्तविकता

सच कुछ लोग माता सीता के बारे में निंदनीय तथा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के बारे में निराधार बातें कहने लगे हैं। कुछ लोग तो प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा देते हैं । ये वो लोग हैं जिन्होंने रामायण या रामचरित मानस का पठन तो क्या ढंग से इन ग्रंथों को खोल कर भी नहीं देखा और बातें करते हैं ब्रह्म और ब्रह्मज्ञान की।                    सीता हरण तो बहुत दूर की बात है, उन जैसी पतिव्रता नारी को परपुरूष द्वारा छूना तक असम्भव था। उनके सतीत्व में इतना बल था कि अगर कोई भी परपुरूष उनको स्पर्श करता तो तत्काल भस्म हो जाता। रावण ने जिनका हरण किया वो वास्तविक माता सीता ना होकर उनकी प्रतिकृति छाया मात्र थी। इसके पीछे एक गूढ़ रहस्य है, जिसका महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण व गोस्वामी तुलसी कृत रामचरित मानस में स्पष्ट वर्णन है… पंचवटी पर निवास के समय जब श्री लक्ष्मण वन में लकड़ी लेने गये थे तो प्रभु श्री राम ने माता जानकी से कहा- “तब तक करो अग्नि में वासा। जब तक करुं निशाचर नाशा॥” प्रभु जानते थे कि रावण अब आने वाला है, इसलिए उन्होंने कहा- हे सीते अब वक्त आ गया है, तुम एक वर्ष तक अ

विभीषण को कलंकित करना कितना सही है?

विभीषण कौन था ये बताने की जरूरत तो है नहीं! हम सब जानते हैं कि वह रावण का भाई और बेहद धार्मिक व्यक्ति था. विभीषण को श्रीराम के परम भक्तों में स्थान प्राप्त है, लेकिन वहीं उसे ‘घर का भेदी’ कहकर लोग आज भी संबोधित करते हैं , या यूं कहें कि ये विभीषण का ही दूसरा नाम बन गया है। एक कहावत कही जाती है "घर का भेदी लंका ढाए" । किन्तु, क्या धर्म के रास्ते पर चलने वाले विभीषण को ऐसी संज्ञा देना उचित है? आईए जानने की कोशिश करते हैं ।                                       विभीषण अपने भाई रावण और कुम्भकर्ण की तरह ही राक्षस कुलोत्पन्न था. उसका जन्म महर्षि विश्रवा व असुर कन्या कैकसी के संयोग से हुआ था । तीनों भाइयों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किए। रावण ने त्रैलोक्य विजयी होने का तो कुम्भकर्ण ने निंद्रासन मांगी। वहीं विभीषण ने जगतपिता से भगवत भक्ति का वरदान मांगा। तप करके रावण ने अपने भाई कुबेर से लंकापुरी छीन लिया और वहां से अपनी सत्ता चलाने लगा। कुम्भकर्ण अपने अजीब वरदान के कारण नींद में ही रहा करता था और विभीषण ने लंका में ही अपना बसेरा बनाया।रावण की सभा मे

रामायण के प्रमुख पात्र व उनका संक्षिप्त परिचय।

रामायण के प्रमुख पात्र व उनका संक्षिप्त  परिचय। आइये रामायण के पात्रो को जाने।                                   दशरथ - रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या  कौशल्या - दशरथ की बङी रानी, राम की माता  सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुध्न की माता  कैकयी - दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता  सीता - जनकपुत्री, राम की पत्नी  उर्मिला - जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी  मांडवी - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी  श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न की पत्नी  राम - दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति  लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति भरत - दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति  शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासूर के संहारक  शान्ता - दशरथ की पुत्री, राम भगिनी  बाली - किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयो का बल  सुग्रीव - बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई  तारा - बाल

रामायण का एक अनजान सत्य!!

केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे.. क्या कारण था ?. पढ़िये पूरी कथा हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।         भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा ॥ अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥ श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥ अगस्त्य म

श्रीराम के सबसे बड़े भक्त-भरत जी या श्री हनुमानजी

भगवान श्रीराम और श्री हनुमानजी का संवाद। बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग . हनुमान जी जब संजीवनी बुटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है।                                                       प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था। और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ। भगवान बोले-कैसे ? हनुमान जी बोले - वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मै जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए। उनके इतना कहते ही मै उठ बैठा ।सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर। शिक्षा :- हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा,

भगवान राम और केवट का संवाद

क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं । विष्णुजी के एक पैर  का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं ।  . क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा,यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा ।  . उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा । फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया ।                                . कुछ समय पश्चात् जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया । इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया ।  . इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे  सफलता नहीं मिली । यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया ।  . इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दि