विभीषण कौन था ये बताने की जरूरत तो है नहीं!
हम सब जानते हैं कि वह रावण का भाई और बेहद धार्मिक व्यक्ति था. विभीषण को श्रीराम के परम भक्तों में स्थान प्राप्त है, लेकिन वहीं उसे ‘घर का भेदी’ कहकर लोग आज भी संबोधित करते हैं , या यूं कहें कि ये विभीषण का ही दूसरा नाम बन गया है।
एक कहावत कही जाती है "घर का भेदी लंका ढाए" ।
एक कहावत कही जाती है "घर का भेदी लंका ढाए" ।
किन्तु, क्या धर्म के रास्ते पर चलने वाले विभीषण को ऐसी संज्ञा देना उचित है?
आईए जानने की कोशिश करते हैं ।
विभीषण अपने भाई रावण और कुम्भकर्ण की तरह ही राक्षस कुलोत्पन्न था. उसका जन्म महर्षि विश्रवा व असुर कन्या कैकसी के संयोग से हुआ था । तीनों भाइयों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किए। रावण ने त्रैलोक्य विजयी होने का तो कुम्भकर्ण ने निंद्रासन मांगी।
वहीं विभीषण ने जगतपिता से भगवत भक्ति का वरदान मांगा।
तप करके रावण ने अपने भाई कुबेर से लंकापुरी छीन लिया और वहां से अपनी सत्ता चलाने लगा। कुम्भकर्ण अपने अजीब वरदान के कारण नींद में ही रहा करता था और विभीषण ने लंका में ही अपना बसेरा बनाया।रावण की सभा में उसे महज एक सलाहकार की भूमिका मिली थी।
वहां भी अपने धार्मिक आचरण के कारण उसकी लंकाधिपति से पटती नहीं थी। रावण पंडित होते हुए भी महाउत्पाती और घमंडी था। ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के बाद वह और भी उदण्ड हो चला था। सोने की लंका से वह पूरी दुनिया पर राज करना चाहता था । वरदान के अनुसार समस्त चराचर जगत पर वह अपना अधिकार समझता था और जब मौक़ा मिले किसी भी जगह धावा बोल दिया करता था।
उसकी राक्षसी सेना न केवल राजाओं को अपितु निर्दोष ऋषि-मुनियों को भी आघात पहुंचाने से बाज नहीं आते थे। यह ऐसी स्थिति थी जो कि लंका में रहते हुए भी विभीषण को लंकाधिपति से बेहद मतान्तर रहता था। चूंकि उसके पास कोई अन्य उपाय था भी नहीं ।अतः उसने भगवान में मन को रमा लिया।
सीताहरण की घटना से वह रावण पर कुपित होकर उसे चेताया, लेकिन अहंकारी रावण ने एक न सुनी और भरी सभा में विभीषण का भीषण अपमान किया।
इतना ही नहीं, सियासुध को आए हनुमानजी के वध हेतु उद्यत रावण को विभीषण ने लाख समझाने की कोशिश की ।उसने रावण से कहा कि दूत को हानि पहुंचाना धर्म संगत नहीं है। रावण ने अट्टहास करते हुए हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया और फिर लंकादहन का काण्ड हुआ।
हालांकि, इस विभीषिका में विभीषण का घर जलने से बच गया।
राम-रावण युद्ध से पहले ही विभीषण ने सभा के दौरान ही बताया था कि सीताहरण लंकानगरी के विनाश का परिचायक है । उसने साफ़ शब्दों में रावण से युद्ध टालने हेतु सीता को लौटाने की गुहार लगाई। लेकिन अहंकार से चूर दशानन ने विभीषण की अत्यंत कटु आलोचना करते हुए उसे राक्षसकुल का कलंक बताया।
बार-बार के अपमान से तंग आकर विभीषण ने अनल, पनस, संपाति, एवं प्रमाति नामक अपने चार राक्षस-मित्रों के साथ राम की शरण में आ गया।
रावण के विरुद्ध युद्ध में राम ने विभीषण को अपना प्रमुख परामर्शदाता बनाया । इसके बाद विभीषण ने लंकापुरी के एक-एक भेद राम को बताए।
उसने सागर पार करने की युक्ति बताई साथ ही रावण के गुप्तचरों की पहचान भी कराई। लिहाजा श्रीराम की सेना के लिए युद्ध बेहद आसान हो गया। इतना ही नहीं, विभीषण खुद भी युद्ध में अपने ही भाई के खिलाफ उतरा और प्रमुख राक्षसों का वध किया।
चूंकि, रावण और उसके सैनिक मायावी शक्ति में निपुण थे, तो युद्ध इतना आसान नहीं होने वाला था. लेकिन विभीषण की सलाह और सहायता से मायावी शक्तियों से लड़ने में श्रीराम की सेना सक्षम हो सकी. हालांकि, युद्ध से पहले बालीपुत्र अंगद को संधि प्रस्ताव के साथ भेजने का सलाह भी विभीषण ने ही दिया था।
युद्ध भूमि में लाख जतन करने के बाद भी जब रावण हार नहीं मान रहा था, तो श्रीराम चिंतित हुए । बार-बार सर काटने के बाद भी रावण फिर से गर्जना करते उठ खड़ा होता था ।
दशानन के प्राण उसकी नाभि में थे, इस बात की जानकारी श्रीराम को तब हुई जब विभीषण ने उन्हें बताया।
दशानन के प्राण उसकी नाभि में थे, इस बात की जानकारी श्रीराम को तब हुई जब विभीषण ने उन्हें बताया।
रावण की मृत्यु के बाद सीता को संग लेकर श्रीराम ने विभीषण को लंकाधिपति घोषित किया। उन्होंने विभीषण को अखण्ड सत्ता का आशीष दिया।
जिस प्रकार अग्निपरीक्षा के बाद भी सीता को पुनः वनगमन करना पड़ा, उसी प्रकार विभीषण धर्म की रक्षा में आजीवन रहे किन्तु आज भी उसे ‘घर का भेदिया’ कहा जाता है।
ये ध्यान देने वाली बात है कि राक्षस कन्या के गर्भ से जन्म लेने के बावजूद भी विभीषण एक ऋषिपुत्र और ब्राह्मण था. लिहाजा उसे धर्म के प्रति लगाव था।
धर्म की रक्षा को लेकर भाई सहित का त्याग करने वाले विभीषण की त्याग भावना को लोग याद नहीं करते, बल्कि उस पर भाईद्रोह और देशद्रोह का आरोप लगाते हैं।
ये बेहद ही आश्चर्यजनक है कि आज भी लोग अपने बच्चों के नाम विभीषण नहीं रखते. जबकि, वह एक धर्मात्मा और प्रजाप्रिय शासक रहा. उसके रहते लंका ही नहीं आर्यावर्त के अन्य भागों में राक्षसी उत्पात समाप्त हुए और शिक्षा-शोध के लिए ऋषिमुनि भय-रहित हुए।
ऐसे में विभीषण को कलंकित करना कितना सही है!
यह सोच का विषय है। पाठक जन अपने विचार अवश्य बताएं।।
यह सोच का विषय है। पाठक जन अपने विचार अवश्य बताएं।।
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